महाकुंभ को ऐतिहासिक और सफल बनाना प्रशासन के साथ स्नानार्थी एवं कल्पवासी की भी जिम्मेदारी 

डा मनमोहन प्रकाश

आस्था , विश्वास और धर्म के विशाल महाकुंभ जहां एक ओर साधु-संतों के विविध रुपों के दर्शन होते हैं, उनसे ध्यान,तप,यज्ञ, पूजा, अर्चना,योग, प्रणायाम और समाधि को समझने और सीखने का; सनातन वृत, उपवास, तीर्थ आदि के महत्त्व को जानने का,उनकी वैज्ञानिकता से परिचत होने का अवसर मिलता है वहीं दूसरी ओर सनातन धर्म ग्रंथों में छिपे ईश्वर प्राप्ति के गुढ़ रहस्यों; नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को सरल और ग्राह्य योग्य भाषा में जानने का अवसर भी प्राप्त होता है। विविधता में एकता की ताकत का एहसास होता है।

यहां यह समझना सबके लिए आवश्यक है कि महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन  को स्नानार्थियों और कल्पवासियों के लिए सुरक्षित, सुगम और सुव्यवस्थित, आनंददायी बनाना केवल प्रशासन की ही जिम्मेदारी नहीं है, अपितु हर सहभागी श्रद्धालुओं, साधु-संतों तथा कल्पवासियों की भी ज़िम्मेदारी है।यह जिम्मेदारी उस समय और अधिक बढ़ जाती है जब ऐसे आयोजनों में देश-विदेश से लाखों/करोड़ों लोग एक साथ संगम किनारे, मेला स्थल तथा आसपास के तीर्थ स्थल पर बिना बुलाए, पूर्व सूचना दिए एकत्रित होते हों।यह भी उतना ही सत्य है कि जब भीड़ के अनुमान से ज्यादा किसी एक स्थान पर अचानक एकत्रित होने की आशंका  हो  तब  विविध आवश्यक सुविधाओं, जरूरतों की व्यवस्था करना तथा भीड़ का उचित प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती बन जाता है। ऐसे समय में यदि हर श्रृद्धालु, स्नानार्थी , साधु-संत छोटी-मोटी परेशानियों को नज़र अंदाज़ कर महाकुंभ में स्नान, पूजा अर्चना को निर्विघ्न संपन्न करना और कराना अपनी  जिम्मेदारी मान ले तो आयोजन को सफल बनाया जा सकता है, आनंद और पुण्य लाभ को दुगुणित किया जा सकता है, दुनिया के लिए एक उदाहरण पेश किया जा सकता है। अतः महाकुंभ में पहुंचने वाले  हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह मेला प्रबंधन समिति द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों को जानें, समझें और उसका पालन सुनिश्चित कर कुंभ प्रवास को न सिर्फ स्वयं के लिए सुगम और आनंद दायक बनाएं अपितु  अन्य श्रृद्धालुओं , स्नानार्थी आदि को भी आनंद के साथ पुण्य अर्जित करने का अवसर दे।

यह तभी संभव है जब हर स्नानार्थी  स्नान उपरांत मेला क्षेत्र में रुक कर अनावश्यक भीड़ न बढ़ाए, कुंभ आयोजन के दौरान आने वाली हर तिथियों को साही स्नान तिथि के समतुल्य मानें, विशिष्ट समझें । कुंभ में जाने वाले हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अच्छे सनातनियों का परिचय देते हुए धैर्य का परिचय दें, आने-जाने वाले मार्गों तथा आवागमन के नियमों का पालन करें, सार्वजनिक स्थलों पर कचरा न फैलाएं और स्वच्छता बनाए रखें,अफवाहें न फैलाएं और न ही अफवाहों पर ध्यान दें। तमाम सावधानियां बरतने के बाबजूद भी यदि आपातकालीन स्थितियां बने तो सतर्क रहें, घबराने और भगदड़ का हिस्सा बनने के स्थान पर सूझबूझ का परिचय देते हुए शांति से अधिकारियों के निर्देशों का पालन करें, संभव हो तो जरूरतमंदों की मदद करें, बुजुर्ग, बच्चों, और दिव्यांगजनों की सहायता करें। वैसे भी धार्मिक आयोजनों में हर श्रद्धालु , सहभागिता करने वाले हर व्यक्ति एवं साधु-संतों से संयमित आचरण  की अपेक्षा रहती न की  किसी प्रकार के उपद्रव , अनैतिक, असामाजिक , असंवैधानिक कृत्य और नकारात्मक विचार की। ऐसे आयोजनों में हर सहभागी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह स्वयं भी जागरूक रहें तथा दूसरों को भी जागरूक करें,  अपनी जिम्मेदारियों को समझें तथा जिम्मेदार सनातनी के रूप में आचारण करें।

कुंभ मेले जैसे महान आध्यात्मिक आयोजन में जब दुनिया के लोगों की सहभागिता हो, मिडिया की निगाह  टिकी हो तब एक सनातनी अपने उत्तम आचरण  और व्यवहार के माध्यम से दूसरों के लिए प्रेरणा और आकर्षण का स्रोत बन सकता है। अतः कुंभ मेले में हर सनातनियों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उसके आचरण में सादगी; व्यवहार में विनम्रता, सहिष्णुता, सहयोग ,सेवा भाव , शांति, धैर्य,संयम, अनुशासन; बोली में मधुरता,दैनिक जीवन में नियमित ध्यान,तप, जप , साधना आदि के माध्यम से आत्म-नियंत्रण; व्यवस्था में सहयोग ही उसे और उसके धर्म को तथा राष्ट्र को गौरव और सम्मान के साथ विशिष्ट पहचान दिला सकते हैं।

मेरा ऐसा मानना है कि  सहभागी जब तक यह नहीं मानेगा कि यह आयोजन उसका अपना है, उसके अपने धर्म का है,उसको सफल बनाना उसकी  अपनी ज़िम्मेदारी है, तब तक महाकुंभ में उसका जाना, रहना,स्नान करना, पूजा पाठ,तप आदि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान की खानापूर्ति भर है, दिखावा मात्र है।

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