अरुण पाठक ने कहा कि राजकपूर प्रतिभाशाली फिल्मकार थे। अभिनय, निर्माण-निर्देशन आदि में उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा की छाप छोड़ी। भारतीय फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने में भी उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। हिन्दी फिल्म संगीत के सरताज संगीतकार शंकर-जयकिशन व सर्वाधिक प्रतिष्ठित गीतकार शैलेन्द्र को फिल्मों में लाने वाले राजकपूर ही थे। सरल शब्दों में सशक्त ढंग से जिस तरह शैलेन्द्र गीत लिखते थे वह अतुलनीय है। रमण कुमार ने कहा कि राजकपूर की फिल्में कर्णप्रिय संगीत के लिए भी जानी जातीे हैं। राम इकबाल सिंह ने कहा कि मुकेश और राजकपूर की जोड़ी ने फिल्मों को कई अविस्मरणीय गीत दिए। नीरज इंटरप्राईजेज के निदेशक नीरज चौधरी ने कहा कि फिल्मकार राजकपूर व गीतकार शैलेन्द्र फिल्म जगत में योगदान के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे।
अरुण पाठक ने ‘आवारा हूं..’, ‘तुम जो हमारे मीत ना होते…’, ‘जाने कहां गए वो दिन…’, ‘जीना यहां मरना यहां…’, ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार…’, ‘याद न जाये बीते दिनों की…’, ‘सजन रे झूठ मत बोलो….’, ‘मेरा नाम राजू…’ आदि गीतों की सुमधुर प्रस्तुति से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। रमण कुमार ने ‘हम तुमसे मुहब्बत करके सनम…’, ‘तारों से प्यारे…’, राम इकबाल सिंह ने ‘दुनियां बनाने वाले…’ सुनाकर सुरमयी श्रद्धांजलि दी।