गुरुदेव के एक आदर्श को भी आत्मसात करना बड़ी उपलब्धि: सूरज शर्मा

# बोकारो में जयंती पर याद किए गए वेदांत दर्शन के विश्व-पुरोधा स्वामी चिन्मयानंद

बोकारो : भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक, वेदान्त दर्शन के विश्व पुरोधा, क्रांतिद्रष्टा युगपुरुष एवं गीता ज्ञान प्रचारक स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती जी की 108वीं जयंती बुधवार को बोकारो में धूमधाम से मनाई गई। चिन्मय विद्यालय एवं चिन्मय मिशन सहित चिन्मय परिवार से जुड़े सभी लोगों ने श्रद्धा-भक्ति के साथ इस अवसर पर कई आयोजन किए। पूजन, भजन-कीर्तन और दान-पुण्य के कार्यक्रमों का सिलसिला दिनभर जारी रहा।

चिन्मय विद्यालय बोकारो में सुबह चिन्मय मिशन बोकारो की आवासीय आचार्या स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती के सानिध्य में परम पूज्य गुरुदेव के श्रीचरण स्वरूप उनकी पादुका का वैदिक विधि से गुरुदेव अष्टोत्तर शतनाम (108 नामों) के साथ पूजन किया गया। इसमें विद्यालय के अध्यक्ष विश्वरूप मुखोपाध्याय, सचिव महेश त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष आर एन मल्लिक, प्राचार्य सूरज शर्मा, उप प्राचार्य नरेंद्र कुमार सहित सभी शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मी व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

पूजन के उपरांत स्वामिनी संयुक्तानंद ने गुरुदेव स्वामी चिन्मयानंद के महानतम व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। बताया कि स्वामीजी का जन्म 8 मई 1916 को केरल में हुआ था और 3 अगस्त 1996 को अमेरिका के शिकागो में उन्होंने महासमाधि प्राप्त की थी। इस जीवन विधि का एक-एक समय उन्होंने देश एवं विश्व कल्याण के लिए अर्पित कर दिया। यौवन काल में उन्होंने देश की स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित किया। देश की आजादी के बाद पत्रकारिता के माध्यम से दबे- कुचले, भूखे -नंगे,जरूरतमंद व्यक्ति के लिए आवाज बने और जब संन्यास लिया तो आजीवन गीता ज्ञान प्रचारक बने। वेदांत में छिपे अमूल्य ज्ञान को उन्होंने जन-जन तक पहुंचाया। उनका मानना था कि भारत के सनातन गौरव को लौटाने के लिए वेदांत की ओर लौटना जरूरी है।

इसी उद्देश्य से उन्होंने पुणे के गणेश मंदिर से गीता ज्ञान- यज्ञ की यात्रा प्रारंभ की और यह उन्होंने जीवनपर्यंत जारी रखा। आज भी उनकी दिव्य छत्रछाया में चिन्मय परिवार के लोग इस यात्रा को अविरल बनाए रखे हैं। स्वामीजी ने सैकड़ों मंदिरों का निर्माण व जीर्णोद्धार करवाया तथा संपूर्ण विश्व में चिन्मय मिशन केंद्र व सैकड़ों विद्यालय की स्थापना कर वेदांत दर्शन के साथ शैक्षणिक उत्थान की नई क्रांति को जन्म दिया। उनके स्वप्न को साकार करने के लिए सैकड़ों स्वामी एवं ब्रह्मचारी दिन-रात इस ज्ञान- यज्ञ व विश्व-निर्माण में अपनी आहुति देते आ रहे हैं। उन्होंने चिन्मय परिवार पर स्वामीजी की असीम कृपा बने रहने की कामना की।

चिन्मय विद्यालय के प्राचार्य सूरज शर्मा ने सभी से अपील करते हुए कहा कि परमपूज्य गुरुदेव स्वामी चिन्मयानंद जी के एक आदर्श को भी अगर हम अपने जीवन मे साथ लेकर चलते हैं तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। गुरुदेव अनुशासन प्रिय, अध्यात्म प्रिय, शिक्षा प्रिय, न्याय प्रिय थे। उन्होंने समाज के निर्माण में बहुमूल्य योगदान दिया। इस क्रम में चिन्मय विद्यालय के संगीत विभाग की ओर से शिक्षकों एवं छात्रों द्वारा कई मधुर एवं कर्ण प्रिय भजन प्रस्तुत किए गए। शिक्षकों द्वारा श्लोक-पुष्पांजलि अर्पित की गई। इसके पूर्व, सेक्टर 5 स्थित मानव सेवा आश्रम में अन्न एवं जरूरी सामान का दान दिया गया। साथ ही, पी एंड टी मोड़ एवं सिटी सेंटर में श्रीमद् भागवत गीता एवं ठंडे पेयजल का वितरण लोगों के बीच किया गया।

संध्याबेला में जनवृत 5 स्थित चिन्मय मिशन केंद्र में भजन संध्या एवं पादुका पूजन का आयोजन किया गया। भजन संध्या में बोकारो के सुप्रसिद्ध गायक अरुण पाठक ने मैथिली में मिथिला वर्णन गीत ‘अपन मिथिला के गाथा हम सुनू एखने सुनाबै छी… ‘ व हिन्दी में भजन ‘मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊं… ‘ सुनाकर समां बांध दिया। गायक प्रसेनजीत शर्मा ने सरस्वती वंदना व ‘हे राम हे राम जग में सांचा तेरा नाम… ‘ सहित अन्य कलाकारों ने भजन की सुमधुर प्रस्तुति से सभी को आनंदित किया। तबले पर रुपक कुमार झा, हारमोनियम पर शिबेन चक्रवर्ती व की बोर्ड पर महेश ने अच्छी संगति की। प्रसाद-वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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