रितेश।
जानिए किस शर्त पर भगवान गणेश ने लिखी महाकाव्य महाभारत?
गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
हर साल धूमधाम से मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का त्योहार इस साल भी दस्तक दे चुका है…इसी के साथ देश भर में गणपति बप्पा मोरया के जयकारे भी सुनाई देने लगे हैं…क्यों न हो…आखिर गजानन देवताओं में प्रथम पूज्य जो हैं…वे बुद्धि के स्वामी जो हैं….वे विद्या के दाता जो हैं…वे उमासुत जो हैं….वे महादेव के पुत्र जो हैं…गणपति जी को सभी देवों में सबसे अधिक धैर्यवान और स्थिर माना जाता है। गणपति बप्पा विघ्नों को हरने वाले देवता हैं..
गजानन के कई हजार नाम
भगवान गणेश के कई हजार नाम हैं….जैसे गजानन, लंबोदर, विनायक, मंगलमूर्ति, मूषकवाहन, गौरीसुत, एकाक्षर, गजवक्र, लंबकर्ण, भालचंद्र, वक्रतुंड, सिद्धिदाता और सिद्धिविनायक….लेकिन उन सभी का वाचन संभव नहीं…हर नाम की अपनी महिमा है…उसकी अपनी एक कहानी है
भगवान गणेश की लेखन शक्ति भी अद्वितीय
बुद्धि के स्वामी, विद्या सुखदाता भगवान गणपति के जीवन का हर अध्याय उनके अनुपम रूप की तरह ही अद्भुत है। विद्या और लेखनी के अधिपति माने जाने वाले गणपति जी की लेखन की शक्ति भी अद्वितीय मानी गई है।
महाभारत से भगवान गणेश का संबंध
बात उस समय की है जब महर्षि वेदव्यास महाभारत नाम के महाकाव्य की रचना प्रारंभ करने जा रहे थे। अपने महाकाव्य के लिए वे एक ऐसा लेखक चाह रहे थे, जो उनके विचारों की गति को बीच में बाधित ना करे। इस क्रम में उन्हें भगवान गणेश की याद आई और उन्होंने आग्रह किया कि श्री गणेश उनके महाकाव्य के लेखक बनें। गणेश जी ने उनकी बात मान ली, लेकिन साथ ही एक शर्त रख दी।
भगवान गणेश ने रखी ये शर्त
गणेश जी की शर्त थी कि महर्षि एक क्षण के लिए भी कथावाचन में विश्राम ना लेंगे। यदि वे एक क्षण भी रूके, तो गणेश जी वहीं लिखना छोड़ देंगे। महर्षि ने उनकी बात मान ली और साथ में अपनी भी एक शर्त रख दी कि गणेश जी बिना समझे कुछ ना लिखेंगे। हर पंक्ति लिखने से पहले उन्हें उसका मर्म समझना होगा। गणेश जी ने उनकी बात मान ली।
इस तरह शुरू किया महाभारत लिखना
भगवान गणेश ने महाकाव्य को लिखना जारी इस तरह दोनों ही विद्वान जन एक साथ आमने-सामने बैठकर अपनी भूमिका निभाने में लग गए। महर्षि व्यास ने बहुत अधिक गति से बोलना शुरू किया और उसी गति से भगवान गणेश ने महाकाव्य को लिखना जारी रखा। इस गति के कारण एकदम से गणेश जी की कलम टूट गई, वे ऋषि की गति के साथ तालमेल बनाने में चूकने लगे। इस स्थिति में हार ना मानते हुए गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़ लिया और उसे स्याही में डुबोकर लिखना जारी रखा।
ऐसे मिला गणेश जी को एकदंत नाम
गणेश जी को नया नाम एकदंत दिया इसके साथ ही वे समझ गए कि उन्हें अपनी लेखन की गति पर थोड़ा अभिमान हो गया था और वे ऋषि की क्षमता को कम कर आंक रहे थे। महर्षि ने उनका घमंड चूर करने के लिए ही अत्यंत तीव्र गति से कथा कही थी। वहीं ऋषि भी समझ गए कि गजानन की त्वरित बुद्धि और लगन का कोई मुकाबला नहीं है। इसी के साथ उन्होंने गणेश जी को नया नाम एकदंत दिया।
महर्षि वेदव्यास ने भी पूरी की शर्त
महर्षि ने भी शर्त पूरी की दोनों ही पक्षों द्वारा एक-दूसरे की शक्ति, क्षमता और बुद्धिमतता को स्वीकार किए जाने के बाद समान लगन और उर्जा के साथ महाकाव्य के लेखन का कार्य होने लगा। कहा जाता है कि इस महाकाव्य को पूरा होने में तीन वर्ष का समय लगा। इन तीन वर्षों में गणेश जी ने एक बार भी ऋषि को एक क्षण के लिए भी नहीं रोका, वहीं महर्षि ने भी शर्त पूरी की।
महाभारत में 1 लाख अंतरे
महाभारत में 1 लाख अंतरे महाकाव्य के दौरान जब भी उन्हें तनिक विश्राम की आवश्यकता होती, वे कोई बहुत कठिन अंतरा बोल देते। शर्त के अनुसार गणेश जी बिना समझे कुछ लिख नहीं सकते थे। इसीलिए जितना समय गणेश जी उस अंतरे को समझने में लेते, उतनी देर में ऋषि विश्राम कर लेते। माना जाता है कि महाभारत महाकाव्य कई अंतरे कहीं गुम हो गए हैं। इसके बावजूद आज भी महाभारत में 1 लाख अंतरे हैं।