बोकारो। चर्चित साहित्यिक संस्था साहित्यलोक की रचनागोष्ठी शनिवार की शाम सेक्टर 2 में पं. उदय कुमार झा के आवास पर हुई। मैथिली महाकाव्य ‘ऊं महाभारत’ के रचयिता वरिष्ठ साहित्यकार बुद्धिनाथ की अध्यक्षता व साहित्यलोेक के संस्थापक महासचिव तुला नन्द मिश्र के संचालन में आयोजित इस रचनागोष्ठी में सर्वप्रथम हाल ही में दिवंगत हुए प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार पंचानन मिश्र व चिकित्सक डाॅ शेखर दत्त झा को श्रद्धांजलि दी गयी। उनकी आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखकर ईश्वर से प्रार्थना की गयी।
रचनागोष्ठी की शुरुआत साहित्यलोक के संयोजक अमन कुमार झा ने अपनी मैथिली रचना ‘गोस्वामी तुलसीदास’ (नाटक) सुनाकर की। कवि अमीरीनाथ झा ‘अमर’ ने मैथिली कविता ‘कोरोना के काल लोक बेहाल छै’ में वर्तमान स्थिति का सटीक चित्रण प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी दूसरी रचना हिन्दी कविता ‘धरती का भगवान आज खुद बना है हैवान’ में सेवा भावना को पीछे छोड़ चुके डाॅक्टर व अस्पताल की लूट संस्कृति को दर्शाया। संस्कृत व मैथिली के वरिष्ठ कवि उदय कुमार झा ने मैथिली कविता ‘निंदित कार्य सतत् हम कएल’ में वर्तमान दौर में युवाओं की अपनी संस्कृति से अलगाव की पीड़ा को व्यक्त किया। कवि अरुण पाठक ने अपनी मैथिली रचना सद्भावना गीत-‘जाति धर्म के नाम पर नहि बांटू इंसान के’ में सामाजिक समरसता बनाए रखने की बात कही। वरिष्ठ कवि बुद्धिनाथ झा ने अपनी मैथिली कविता ‘संबोधन’ में सामाजिक व राजनीतिक क्षरण को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। पठित रचनाओं पर समीक्षा टिप्पणी तुलानंद मिश्र, बुद्धिनाथ झा, उदय कंुमार झा व वरीय अधिवक्ता विश्वनाथ झा ने दी।
गोष्ठी का संचालन कर रहे साहित्यलोक के संस्थापक महासचिव तुलानंद मिश्र ने कहा कि 31 दिसंबर 1992 को साहित्यलोक की स्थापना हुई थी। स्थापना काल से ही यह संस्था बोकारो के साहित्यिक माहौल को जीवंत बनाने में सक्रिय भूमिका निभाती आ रही है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में बुद्विनाथ झा ने कहा कि पूरे झारखंड में मैथिली साहित्य में बोकारो सबसे सशक्त है। मैथिली साहित्य के विकास में बोकारो की साहित्यिक संस्था ‘साहित्यलोक’ का योगदान प्रशंसनीय रहा है। बोकारो ने मैथिली साहित्य को तीन महाकाव्य दिए हैं। मैथिली सेवी सांस्कृतिक संस्थाओं में भी बोकारो की मिथिला सांस्कृतिक परिषद् सबसे उत्तम है। झा ने कहा कि लोकभाषा में रचना के कारण महाकवि विद्यापति साहित्यक जगत में मिथिलांचल की पहचान हैं। महाकवि तुलसीदास को लोकभाषा में रचना की प्रेरणा विद्यापति से ही मिली। कार्यक्रम के अंत में इस वर्ष शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित होने के लिए चयनित हुईं बोकारो की शिक्षिका व साहित्यलोक से जुड़ीं कवयित्री डाॅ निरुपमा झा की इस उपलब्धि की चर्चा करते हुए सभी ने प्रसन्नता व्यक्त की।