– करुणा कलिका I बोकारो स्टील सिटी-झारखंड
क्षणे क्षणे बदले तहरो मिजाज बबुनी ,
धोखेबाज बबुनी उड़नबाज बबुनी ,
काहे लउके ना अब तहरा बंगाल बबुनी ?
उड़नबाज बबुनी चालबाज बबुनी ।
कतना सुविधा मिलल ?
कतना पईसवा ?
बंगला आ गाड़ी मिलल ,
आ कि जमीनवा ?
दीदीया का देहली तोहके ?
हमके बताव,
साची साची कह बहिना ,
कुछो ना छिपाव,
कासे कईल जाई तहरो इलाज बबुनी?
धोखेबाज बबुनी उड़नबाज बबुनी ।
सबे खराबी दिखे ,
तहरा ही देश में ।
बड़ तू गद्दार बाड़ू,
हिन्दू के भेष में ।
छाती रोज पिटतारू,
रोजगार चाही ।
एगो दूगो आऊर ,
औडी सौडी कार चाही।
केतना बावे तहार घटिया मिजाज बबुनी ?
धोखेबाज बबुनी उड़नबाज बबुनी ।
भईल नरसंहार ताहर,
नाशा नाही उतरल।
सबके झुठाव तारू ,
बाडू मन बड़ल।
कइलस जोलहवा कवन,
जादू तहरा ऊपर ।
बोली बोली झूठ खुद के,
मानतारू सुपर।
छोड़ छोड़ गीता पढ़ ल नमाज बबुनी ,
धोखेबाज बबुनी उड़नबाज बबुनी ।