न्यूयॉर्क: पाकिस्तान को 2025 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता करने का मौका मिला है। इस समिति का काम तालिबान से जुड़े लोगों पर आर्थिक प्रतिबंध, यात्रा रोक और हथियारों की बिक्री पर पाबंदी लगाना होता है। पाकिस्तान के साथ-साथ यह देश सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समिति में उपाध्यक्ष की भूमिका भी निभाएगा, जबकि पाकिस्तान पर हमेशा से आतंकवादियों को पनाह देने और मदद करने के आरोप लगते रहे हैं। यह खबर ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है।
विवादित नेतृत्व
तालिबान प्रतिबंध समिति, जिसे 1988 समिति भी कहा जाता है, अफगानिस्तान में शांति और सुरक्षा को खतरा देने वाले तालिबान से जुड़े व्यक्तियों और समूहों पर प्रतिबंध लगाती है। पाकिस्तान के नेतृत्व में रूस और गुयाना इस समिति के उपाध्यक्ष होंगे।
पाकिस्तान और आतंकवाद के जुर्म
पाकिस्तान पर लंबे समय से आतंकवादी समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को सुरक्षित ठिकाना देने और मदद करने के आरोप लगते रहे हैं। 2011 में अमेरिका की सेना ने ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के अब्बोटाबाद में मार गिराया था, जो उस समय अलकायदा का प्रमुख था।
भारत का कड़ा रुख
भारत ने इस फैसले की तीव्र निंदा की है और कहा है कि पाकिस्तान अपने सैन्य और खुफिया तंत्र के ज़रिए आतंकवाद को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है। अप्रैल 2025 में पहलगाम में आतंकवादियों ने 26 नागरिकों की हत्या की, जिसके बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई की और पाकिस्तान में कई आतंकवादियों को खत्म किया।
दुनिया में चिंता
अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विशेषज्ञों ने इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि पाकिस्तान जैसे देश को आतंकवाद विरोधी जिम्मेदारियां देना संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।
अब सवाल उठता है कि क्या ऐसा देश, जिस पर आतंकवाद का सहयोग करने के गंभीर आरोप हैं, विश्व के आतंकवाद विरोधी संगठनों का नेतृत्व करने लायक है?
यह फैसला पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा चौंकाने वाला मोड़ है और आने वाले समय में इसके प्रभाव पर नजर रखी जाएगी।