विश्व संगीत दिवस (21 जून) पर विशेष
संगीत के बिना दुनिया की कल्पना भी बेमानी है
अरुण पाठक
संगीत सबको आकर्षित करता है। संगीत के बिना दुनिया की कल्पना भी बेमानी है। संगीत शांति प्रदायक है, तो भावाभिव्यक्ति का भी सशक्त माध्यम है। पर्व-त्योहार से लेकर खुशी व उल्लास के अवसर हों या फिर उदासी के क्षण सबकी अभिव्यक्ति में संगीत सक्षम है। संगीत से आत्मिक शांति मिलती है। संगीत हमारे जीवन में इस तरह रच-बस चुका है, कि इसके बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। विश्व का कोई भी कोना हो, संगीत के प्रभाव से अछूता नहीं है। संगीत का आकर्षण सबको प्रभावित करता है।
क्षेत्र के हिसाब से संगीत के रुप अलग-अलग जरुर हैं, लेकिन इसका आकर्षण सबको बांध लेता है। संगीत के प्रभाव की व्यापकता ही है जो 21 जून को हर वर्ष विश्व संगीत दिवस के रुप में मनाया जाता है। संगीत को शांति का वाहक माना जाता है। विश्व में शांति बरकरार रहे इसी उद्देश्य को लेकर 21 जून 1982 को फ्रांस में पहली बार विश्व संगीत दिवस मनाया गया। आज भारत सहित विश्व के 120 से अधिक देशों में विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है।
भारत की बात करें तो यहां प्राचीन काल से ही संगीत के प्रति आकर्षण रहा है। शास्त्रीय, उपशास्त्रीय से लेकर फिल्म संगीत के क्षेत्र में अनेक दिग्गज संगीत साधक हुए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा व साधना की बदौलत विश्व भर में ख्याति अर्जित की है। शास्त्रीय संगीत के समझने वाले लोगों की संख्या जहां सीमित होती है, वहीं लोकगीतों व खासकर फिल्म संगीत के कायल प्रायः सभी होते हैं।
भारतीय फिल्म संगीत में के एल सहगल, मो. रफी, मुकेश, किशोर कुमार, मन्ना डे, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, सुरैया, शमशाद बेगम, तलत मेहमूद आदि पार्श्वगायक-गायिकाओं के गाए नग्में आज भी संगीत रसिकों को मुग्ध कर देते हैं। हिन्दी सिने संगीत को स्वरुप देने व लोकप्रिय बनाने में खेमचंद्र प्रकाश, नौशाद, शंकर-जयकिशन, सचिन देव बर्मन, रोशन, मदन मोहन, रवि, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आर डी बर्मन आदि संगीतकारों का योगदान प्रशंसनीय रहा। परिवर्तन समय सापेक्ष होता है। बदलते दौर में संगीत का माधुर्य पहले से प्रभावित हुआ है, लेकिन नये दौर के युवा आधुनिक संगीत का भरपूर मजा ले रहे हैं।