इंदौर /जबलपुर : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह के खिलाफ सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए आपत्तिजनक, सांप्रदायिक और महिला विरोधी बयान पर सख्त रुख अपनाते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस मामले में खुद संज्ञान लेते हुए पुलिस को कड़ी धाराओं में केस दर्ज करने को कहा।
विजय शाह ने 14 मई को महू में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बताया। उन्होंने कहा,
“आतंकियों ने हमारी बहनों का सिंदूर मिटाया, तो हमने उनकी बहन को भेजा बदला लेने… उन्होंने हिंदुओं को नंगा करके मारा, तो मोदी जी ने उनकी बहन को भेजा उन्हें नंगा करने… हमारी बहनों को विधवा किया, अब तुम्हारी बहन तुम्हें नंगी करेगी।”
ये बातें उन्होंने उस मंच से कहीं जहां केंद्रीय मंत्री सवित्री ठाकुर, पूर्व कैबिनेट मंत्री उषा ठाकुर और कई बीजेपी नेता मौजूद थे।
बयान के बाद देशभर में निंदा शुरू हो गई। सेना के पूर्व अधिकारियों, विपक्षी दलों और आम लोगों ने इसे शर्मनाक बताया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ऐसे मंत्री को तुरंत बर्खास्त किया जाना चाहिए।
कोर्ट का सख्त रुख
जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की बेंच ने दोपहर 2 बजे स्वतः संज्ञान लेते हुए डीजीपी कैलाश मकवाना को आदेश दिया कि उसी शाम तक (14 मई) एफआईआर दर्ज हो जानी चाहिए, वरना अदालत अवमानना की कार्रवाई करेगी।
कोर्ट ने कहा,
“भारतीय सेना, जो देश की आखिरी ईमानदार और बलिदानी संस्था मानी जाती है, उस पर मंत्री ने गटर जैसी भाषा का इस्तेमाल किया है। यह बयान देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला है।”
रात करीब 11 बजे इंदौर पुलिस ने मंत्री विजय शाह के खिलाफ मनपुर थाने में मामला दर्ज कर लिया।
इतिहास में पहली बार
ये पहला मौका है जब मध्य प्रदेश के किसी मंत्री पर देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने जैसे गंभीर आरोपों में एफआईआर दर्ज हुई है।
कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारतीय सेना की प्रमुख चेहरों में रही हैं। वे अक्सर विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ मीडिया ब्रीफिंग्स में नजर आती हैं।
अब ये मामला सिर्फ राजनीतिक नहीं रहा, बल्कि एक बड़ा संवैधानिक और सामाजिक मुद्दा बन गया है। कोर्ट की सख्ती और समाज की प्रतिक्रिया से साफ है कि अब नेताओं की जुबान पर लगाम लगाने की जरूरत और ज़्यादा महसूस की जा रही है।