संस्कार भारती के अखिल भारतीय कला साधक सगम में कलाकारों ने बिखेरी अद्भुत सांस्कृतिक छटा

 

– अरुण पाठक

ललित कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना जगाने को लेकर कार्यरत अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती द्वारा विगत दिनों बेंगलुरु के आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में चार दिवसीय अखिल भारतीय कला साधक संगम 2024 का आयोजन किया गया. संस्कार भारती के इस वार्षिक अधिवेशन में भारत के विभिन्न प्रांतों से ढाई हजार कलाकार शामिल हुए. कलाकारों ने संगीत, नाटक, चित्रकला, काव्य, साहित्य और नृत्य विधाओं में अपनी प्रस्तुतियों से अद्भुत छटा बिखेरकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया. ‘सा कला या विमुक्तये’ अर्थात ‘कला वह है जो बुराइयों के बंधन काटकर मुक्ति प्रदान करती है’ के घोष वाक्य के साथ देशभर में संस्कार भारती की 1200 से अधिक इकाइयां कार्य कर रही हैं.

भारतीय कला साधक संगम 2024 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन मधुकर भागवत ने कहा कि कला संस्कार देने के लिए है, समाज को समरस बनाने के लिए है. कलाकार अपने संस्कार और चरित्र से संपूर्ण कला जगत को  संदेश दे. इन्हीं उद्देश्यों के लिए संस्कार भारती निरंतर काम कर रहा है. अब संस्कार भारती के लिए प्रोग्रेसिव अनफोल्डमेंट की जरूरत आ गई है. कला के क्षेत्र में संस्कार भारती  ऐसी स्थिति में आ गई कि  अब कला के माध्यम से समाज में परिवर्तन ला सकती है. इसके लिए अब हमें आगे क्या करना है इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि आज कला समाजोन्मुखी नहीं है इसलिए विवादों में अटक जाता है. समाज में अभद्रता को ज्यादा जगह मिलती है. इसे समाप्त करने के लिए कला के क्षेत्र में मांगल्य स्थापित करने वाला विमर्श करने की जरूरत है. भारतीय कला सत्यम् शिवम् सुंदरम् के सिद्धांत पर चलती है. सत्य और शिव जब साथ चलते है तो परिणाम सुंदर होता है. इसके लिए हमें कार्यकर्ता बनना है. कार्यकर्ता का पूरा ध्यान कार्य पर ही हो. कार्यकर्ता को अपने आप को मान-सम्मान प्रतिष्ठा से अलग रखने की कोशिश करनी चाहिए. कार्य अपने हाथ है, फल प्रभु के हाथ है, इस विचार  के साथ कार्य करना चाहिए. अपने ऐसे ही प्रयासों से कार्यकर्ता को समाज में तरह तरह के कलाकारों को संगठन से जोड़ना पड़ेगा.

विश्व गुरु भारत नए विश्व का निर्माण  करेगा.

आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर जी ने कहा कि  संघे शक्ति कलियुगे को ध्यान में रखते हुए आरएसएस हिंदू समाज को संगठित कर रही है. संस्कार भारती और संघ की शाखाओं के माध्यम से ही श्रेष्ठ भारत की नीव मजबूत हो रही है इनके कार्यकर्ता बड़ी ही निष्ठा से काम कर रहे है. अयोध्या में प्रभु राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से ही देश में एक राम लहर उठा है. शक्ति, भक्ति, युक्ति और मोक्ष से आत्म बोध होता है. आज अधिकतर लोग मानसिक रोगों से पीड़ित है, हर चालीस में से एक आत्म हत्या करता है. इन परिस्थितियों में युक्ति से काम लेना पड़ेगा. मनुष्य को अपने जीवन को सरस बनाने का प्रयास करना चाहिए. कला और संस्कार से लोगों में आत्म विश्वास पैदा हो. ऐसे प्रयास निरंतर चलते रहना चाहिए.

महाभारत सीरियल के श्रीकृष्ण एवं संस्कार भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीतीश भारद्वाज ने कहा कि हिंदू समाज में वैश्विक दृष्टिकोण है. सामाजिक समरसता के विषय पर केंद्रित कई कार्यक्रम हुए लेकिन केवल इससे काम नहीं चलेगा. हम सबको इस दिशा में एक जुट होकर काम करने होंगे. इस दौरान संस्कार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष वासुदेव कामथ, उपाध्यक्ष मंजु मैसुर नाथ एवं डॉ हेमलता एस मोहन, राष्ट्रीय महामंत्री अश्विन दलवी, पं चेतन जोशी, प्रसिद्ध फिल्म निदेशक राज दत्त, अयोध्या मंदिर में रामलला के मूर्तिकार अरुण योगिराज एवं दूसरे चयनित मूर्तिकार जी. एल. भट्ट, मन मोहन वैद्य, संस्कार भारती के अखिल भारतीय लोक कला संयोजिका प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी समेत कई प्रसिद्ध कलाकार मौजूद थे. इसके पूर्व संस्कार भारती के राष्ट्रीय महामंत्री अश्विन दलवी ने कला साधक संगम की रिपोर्ट प्रस्तुत की. उत्तर पूर्व के क्षेत्र प्रमुख डा. संजय कुमार चौधरी (बोकारो) ने कार्यक्रम के दौरान मुख्य संचालक की भूमिका निभाई.

झारखंड के कलाकारों ने राष्ट्रीय पटल पर समरसता की झांकी प्रस्तुति की
झारखंड से आए 25 सदस्यीय कलाकारों के दल ने अखिल भारतीय कला साधक संगम के दौरान संस्कार भारती झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष सुशील अंकन के नेतृत्व में आयोजित कांवर शोभा यात्रा के माध्यम से सामाजिक समरसता की झांकी प्रस्तुत की. इसके अलावे छौ नृत्य की टीम ने भी श्रीराम केवट  प्रसंग पर नृत्य नाटिका की प्रस्तुति की. झारखंड से आए कलाकारों में सुशील अंकन,  उमेशचन्द्र मिश्र, विश्वनाथ प्रसाद, राकेश रमण, संजय कुमार श्रीवास्तव, रामानुज पाठक, डॉ. रागिणी भूषण, डॉ. जूही सपर्पिता, डा. मुदिता चंद्रा, अनीता सिंह, मथुरेश कुमार वर्मा, सच्चिदानंद सिंह, अर्चना वर्मा, ब्रह्मानंद दसौंधी, सी. ए. विकास वर्मा, कुमार केशव, विष्णु चरण गिरि, नरेन्द्र प्रसाद, सत्यजीत कृष्ण, हरिओम सुधांशु, विपिन प्रसाद सिन्हा, धीरज कुमार आदि शामिल थे.

समरसता शोभा यात्रा में देश भर के ढाई हजार से ज्यादा कलाकारों ने कला का प्रदर्शन किया: 
देश के अन्य राज्यों के कलाकारों  ने भी अपने अपने राज्यों के परिधानों में अपने राज्यों की संस्कृति और कलाओं की प्रस्तुति की. इन कलाकरों में यूपी, महाराष्ट्र, मणिपुर, असम, गोवा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, उड़ीसा, सिक्किम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीस गढ़, उतराखंड, विदर्भ प्रांत समेत पूर्वोत्तर राज्यों समेत देश भर के ढाई हजार से भी ज्यादा कलाकार शामिल थे.

चार दिनों तक चले कार्यक्रमों में ढाई हजार कलाकार शामिल हुए:
संस्कार भारती द्वारा आयोजित चार दिवसीय कार्यक्रम सामाजिक समरसता की थीम पर केंद्रित था. इसमें देश भर से आए करीब ढाई हजार कलाकार शामिल हुए. आर्ट ऑफ लिविंग के विशाल प्रशाल भवन में चार दिनों तक कई कार्यक्रम आयोजित किए गए.  इनमें समरसता पर आधारित शार्ट फिल्म का प्रदर्शन, विभिन्न प्रांतों के समरसता के अग्रदूत रहें महापुरूषों की रंगली पोर्टेड , विभिन्न प्रांतों की शैली में रंगोली प्रदर्शनी एवं चित्रकला प्रदर्शनी, अलग अलग राज्यों की लोक कलाओं का प्रदर्शन, रामायण में समरसता, भरत नाट्यम, समरसता पर कवि सम्मेलन, भरत मुनि सम्मान, छौ नृत्य, कुचीपुड़ी, कत्थक, समरसता शोभा यात्रा समेत अनेकों कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.

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