# शुकदेव और राजा परीक्षित संवाद के जरिए बताई श्रीमद्भागवत की महत्ता
बोकारो : मैथिली कला मंच काली पूजा ट्रस्ट की ओर से नगर के सेक्टर-2 स्थित श्यामा माई मंदिर में आयोजित होली महोत्सव सह श्रीमद्भागवत कथा वृष्टि रस कार्यक्रम के तीसरे दिन मंगलवार को गोविंदजी शास्त्री ने राजा परीक्षित और शुकदेव प्रसंग का वर्णन किया। इसके माध्यम से उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा की महत्ता बताई।
उन्होंने कहा कि इस कथा श्रवण का यही माहात्म्य है कि इससे निरर्थक जीवन भी सार्थक हो जाता है। शास्त्रीजी ने शुकदेव परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज वनों में काफी दूर चले गए। उनको प्यास लगी, पास में समीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे और बोले- ऋषिवर, मुझे पानी पिला दो, मुझे प्यास लगी है, लेकिन समीक ऋषि समाधि में थे, इसलिए पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि इसने मेरा अपमान किया है, मुझे भी इसका अपमान करना चाहिए। उसने पास में से एक मरा हुआ सर्प उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने समीक ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने नदी का जल हाथ में लेकर शाप दे डाला कि जिसने मेरे पिता का अपमान किया है, आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी आएगा और उसे जलाकर भस्म कर देगा। समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित हैं और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। देवयोग वश परीक्षित ने आज वही मुकुट पहन रखा था। समीक ऋषि ने यह सूचना जाकर परीक्षित महाराज को दी कि आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प पक्षी तुम्हें जलाकर नष्ट कर देगा।
यह सुनकर परीक्षित महाराज दुःखी नहीं हुए और अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर गंगा नदी के तट पर पहुंचे। वहां पर बड़े-बड़े ऋषि, मुनि देवता आ पहुंचे और अंत में व्यास नंदन शुकदेव वहां पर पहुंचे। शुकदेव को देखकर सभी ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। शुकदेव इस संसार में भागवत का ज्ञान देने के लिए ही प्रकट हुए हैं। शुकदेव का जन्म विचित्र तरीके से हुआ। कहते हैं बारह वर्ष तक मां के गर्भ में शुकदेव जी रहे। एक बार शुकदेव जी पर देवलोक की अप्सरा रंभा आकर्षित हो गई और उनसे प्रणय निवेदन किया। शुकदेव ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। जब वह बहुत कोशिश कर चुकी, तो शुकदेव ने पूछा, आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं। मैं तो उस सार्थक रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक होने लगता है। मैं उस रस को छोड़कर जीवन को निरर्थक बनाना नहीं चाहता।
मंदिर परिसर स्थित अमरेंद्र मिश्र सभागार में आयोजित इस अनुष्ठान में महायज्ञ के यजमान संजय कुमार झा व सुनीता झा, सहायक यजमान ममता सिंह, सतीश सिंह सहित मैथिली कलामंच कालीपूजा ट्रस्ट के महामंत्री सुनील मोहन ठाकुर के अलावा सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे।